10-September-2024  

दिव्य शाकद्वीपीय ब्राह्मण समिति: एक परिचय

शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के कल्याण के लिए समर्पित दिव्य शाकद्वीपीय ब्राह्मण समिति गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित एक सामाजिक संगठन है जो शाकद्वीपीय ब्राह्मण समुदाय के उत्थान और कल्याण के लिए समर्पित है। 12 अगस्त 2012 को स्थापित यह समिति शिक्षा, सामाजिक न्याय, और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे क्षेत्रों में निरन्तर महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।

समिति के उद्देश्य:

 शाकद्वीपीय ब्राह्मण में चिर प्रतिष्ठा, आत्मचिन्तन, एकता, बन्धुत्व, समन्वय सग स्थापना, सौहार्द्र तथा सामाजिक क्रिया कलाप द्वारा अपने महत मूल्यों को प्राप्त करने के लिए संगठित होना
 संस्था के सदस्यों तथा परिवारों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए प्रोत्साहित करना एवं सहयोग देना
 नारियों की शिक्षा व उनके परम्परागत कला-कौशल की अभिवृद्धि हेतु निरन्तर प्रयास करना तथा कन्या भ्रूणहत्या की मानसिकता का समूल नाश करना। नारियों के उत्थान, सम्मान तथा सामाजिक शोषण के विरुद्ध सहयोग एवं प्रतिष्ठा दिलवाना


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!! श्री सूर्य वन्दना !!

हे आदि देव ! हे सूर्य देव ! नित कोटि कोटि सादर नमनम् ।।
हे दिनेश, दिनपति, दिनकर, दिन मणि, दिप्तांशु, दिवाकर दें वरः
दिवापती, आदित्य, भानु, रवि, जगत्प्राण, खग, भास्कर, निशिहर।
सारंग, सूर्य, सविता, ग्रहपति, मार्तण्ड, मित्र पूषण, प्रभाकरः
हे विवस्वान, हे तरणि, अर्क, हे पद्म प्रबोधक, शंख चक्रधर ।।
हे आदि देव! हे सूर्य देव ! नित कोटि कोटि सादर नमनम् ।।
हे हे मरीचि, हे तपन और हे महासूर, कश्यप नंदन; ऋतुकर्ता,
नित सुकान्ति दाता, हे परम पुरुष के दिव्य नयन।
सब सुखकर्ता, सब दुःखहर्ता, तेरे प्रताप से त्वर क्षय हो;
हे गिहिर तप्तत्वागी नगागि, हे अंशुगान तेरी जय हो ।।
हे आदि देव ! हे सूर्य देव ! नित कोटि कोटि सादर नमनम् ।।
तू ही महेश, ब्रह्मा, विष्णु, हो अंशुमालि, त्वष्टाअरूभगः
ग्रह में प्रधान, अति प्राणवन्त, खुशियां बिखरा आलोकित जग।
प्रत्यक्षदेव, सप्ताश्वों युत, रथ पर चढ़ करते परिभ्रमणः
पूरे अम्बर में निर्विरोध, रुकते न कहीं भी हो इक क्षण ।।
हे आदि देव! हे सूर्य देव ! नित कोटि कोटि सादर नमनम् ।।
हो तुम्ही सत्य शिव औ सुन्दर, नित दर्शन कर लें हर प्राणी;
हर लो तुम सबके पाप दाप, दो वरारोग्य नित मृदु वाणी।
उर्जस्वित हो हर मनः प्राण, हो जायें तुमसा ज्योतिर्मयः
मिट जायें सारे भेद भाव, मानवता रहे यहां अक्षय ।।
हे आदि देव ! हे सूर्य देव ! नित कोटि कोटि सादर नमनम् ।।

!! ध्वजगीत !!

जयति जय जय सूर्य सविता। जयति जय जग वन्दिता ।।
जयति संज्ञा जथति छाया। जयति जय मुनिं राधिता ।।
जयति जय जय सूर्य सविता। जयति जय जग वन्दिता ।।

सप्त अर्जव सप्त उपवन। सप्त ऋषि कुल जय करें।
वैद की बोलें ऋचाएं। यज्ञ हम निसि दिन करें ।।

स्वाहा स्वधा उच्चार कर हम। देव ऋषि तर्पण करें।
उद्योग उद्यम हो सफल सब। जथ मातृ भूमि विजय करें ।।

तुम पिता हो तुम पितामह। तुम सदा सर्वच हो।।
हम आपके ही अंश है प्रभु। निज कृपा कर दीजिए ।।

जय करें यह ध्वज सभा में। ऐसा वर प्रभु दीजिए।
जयति जय जय सूर्य सविता। जयति जय जग वन्दिता ।।
जयति संज्ञा जथति छाया। जयति जय मुनिं राधिता ।।
जयति जय जय सूर्य सविता। जयति जय जग वन्दिता ।।

!! श्री सूर्य आरती !!

ॐ जय कश्यप नन्दन ॐ जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन-2, भक्त हृदय चन्दन ।। ॐ जय कश्यप नन्दन।।

सप्त अश्व रथ राजित, एक चक्रधारी। रवि ! एक चक्रधारी ।
दुःखहारी सुखकारी-2, मानस मलहारी।। ॐ जय कश्यप नन्दन ।।

सुर, मुनि, भूसुर बन्दित, विमल विभवशाली। रवि ! विमल विभवशाली ।
अघदल दलन दिवाकर-2, दिव्य किरण माली ।। ऊँ जय कश्यप नन्दन ।।

सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी। रवि ! सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन लोचन-2, भव बंधन हारी।। ऊँ जय कश्यप नन्दन।।

कमल समूह विकासक, नासक त्रय तापा। रवि ! नासक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति-2, मन निज संतापा ।। ॐ जय कश्यप नन्दन ।।

नेत्र व्याधि हर सुर वर, भू पीडा हारी। रवि ! भू पीडा हारी।
दृष्टि विमोचन संतत-2, परहित व्रतधारी ।। ॐ जय कश्यप नन्दन ।।

सूर्यदेव करूणाकर, अब करूणा कीजै। रवि ! अब करूणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब 2, तत्वज्ञान दीजै ।। ऊँ जय कश्यप नन्दन ।।

ॐ जय कश्यप नन्दन ऊँ जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन-2, भक्त हृदय चन्दन ।। ऊँ जय कश्यप नन्दन।।

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